Surdas ka jivan parichay – सूरदास जी का जीवन परिचय

surdas jeevan parichay in hindi








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सूरदास

कवि-परिचय   

हिंदी में कृष्ण-काव्य की श्रेष्ठता का श्रेय महात्मा सूरदास को जाता है। ये साहित्याकाश में देदीप्यमान सूर्य ही थे, जिन्होंने भक्ति, काव्य और संगीत को त्रिवेणी बहा कर भक्तों, संगीतकारों और साधारण जनों के मन को रस सिक्त कर दिया था

सूरदास का जन्म

सूरदास का जन्म सन् 1478 ई० को वैशाख पंचमी को बल्लभगढ़ के निकट सोही नामक गांव में हुआ था। एक मान्यता के अनुसार इनका जन्म मथुरा के निकट रुनकता या रेणुका क्षेत्र में हुआ था। सारस्वत ब्राह्मण थे। इसके अतिरिक्त उनको पारिवारिक स्थिति का और कुछ ज्ञान नहीं है। सूरदास नेत्रहीन थे, पर यह अब तक निश्चित नहीं हो पाया कि वे जन्मांध ये अथवा बाद में अंधे हुए उनके काव्य में दृश्य जगत् के सूक्ष्मातिसूक्ष्म दृश्यों का सजीव अंकन देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे जन्मांध हो चौरासी वैष्णव की वार्ता के अनुसार वे संन्यासी वेष में मधुरा के बीच गऊघाट पर रहा करते थे। यहाँ उनकी भेट पुष्टिमागी] वल्लभाचार्य से हुई थी। वल्लभ ने उन्हें अपने संप्रदाय में दीक्षित कर उन्हें भागवत के आधार पर लीलापद रचने को कहा। गुरु आज्ञा से वे श्रीनाथ के मंदिर में कोर्तन और स्वरचित पदों का गायन करने लगे। उन्होंने अपनी तैतीस वर्ष को अवस्था में श्रीनाथ के मंदिर में कीर्तन करना आरंभ किया था|

सूरदास की मृत्यु

सन् 1583 ई० तक मृत्यु- पर्यंत नियमित रूप से यह कार्य करते रहे। उनका देहांत पारसोली में हुआ था। मान्यता है कि अपने 105 वर्ष के जीवन में उन्होंने लगभग सवा लाख पदों की रचना की।

सूरदास ने भागवत के आधार पर कृष्ण लीला संबंधी पदों की रचना की जो बाद में संग्रहीत होकर ‘सूरसागर’ कहलाने लगा। अब इसमें मात्र चार-पाँच हजार पद है। इसके अतिरिक्त सूर-कृत लगभग चौबीस ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है, पर उनकी प्रामाणिकता विवादास्पद है। उनके तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैसूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहरी’सूरसारावलो’ एक प्रकार से सूरसागर की विषय सूची सी है और ‘साहित्य तहरो’ में सूरसागर में लिए गए कूट पदों का संग्रह है। इस मे प्रकार ‘सूरसागर’ ही उनको कीर्ति का आधार स्तंभ बन जाता है। इस में भागवत की तरह बारह स्कंध है, पर यह भागवत का अनुवाद नहीं है और न ही इसमें भागवत जैसी वर्णनात्मकता है। यह एक गेय मुक्तक काव्य है जिसमें श्री कृष्ण के संपूर्ण जीवन का चित्रण न करके उनको लीलाओं का विस्तारपूर्वक फुटकर पदों में वर्णन किया है।

 

सूरदास को ‘वात्सल्य’ और शृंगार का सर्वश्रेष्ठ कवि माना जाता है। इन्होंने मानव जीवन की सहज-स्वाभाविक विशेषताओं को अति सुंदर ढंग से कविता के माध्यम से प्रस्तुत किया था और कृष्ण के प्रेम की प्रतिष्ठा करने में इन्होंने अपार सफलता प्राप्त की। इन की कविता में कोमल कति ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। इन्होंने गीति तत्त्व का सुंदर रूप प्रस्तुत किया है।


 

सूरदास के कुछ महत्पूर्ण रचनाएँ

  • भजन
  • मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
  • प्रीति करि काहु सुख न लह्यो
  • भाव भगति है जाकें
  • सूरदासके पद
  • भोरहि सहचरि कातर दिठि
  • ऊधौ, कर्मन की गति न्यारी |

धन्यवाद——-

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