गणतंत्र दिवस
छब्बीस जनवरी कहती आकर हर बार,
संघर्षो से ही मिलता है जीने का अधिकार।
स्वतंत्रता किसे प्रिय नहीं ? स्वतंत्रता वरदान है और परतंत्रता अभिशाप क्षण भर की परतंत्रता भी असहनीय बन जाती है। पशु-पक्षी तक पराधीनता के बंधन में छटपटाने लगते हैं तब मानव जो संसार का सर्वश्रेष्ठ प्राणी माना जाता है पराधीनता को कैसे सहन करता है। कभी-कभी विवश एवं साधनहीन होने के कारण उसे पराधीनता की शिला में पिसना पड़ता है। शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने पिंजरे में बंद पक्षी के से पराधीनता के उत्पीड़न को प्रकट करते हुए कहा है –
नीड़ न दो चाहे टहनी का, आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो,
लेकिन पंख दिए हैं तो आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
जो राष्ट्र किसी दूसरे राष्ट्र दुवारा पराधीन बना लिया जाता है, उसका अपना अस्तित्व ही समाप्त हो जाता है। उसका केवल राजनीतिक दृष्टि से ही पतन नहीं होता अपितु उसका सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक दृष्टि से भी पतन होने लगता है। भारत देश को भी शताब्दियों तक पराधीनता का अभिशाप सहन करना पड़ा। लंबे संघर्ष के बाद 15 अगस्त, 1947 को जब देश स्वतंत्र हुआ तो उसकी प्रसन्नता का पारावार न था। ऐसा लग रहा था जैसे अंधे को प्रकाश मिल गया हो, निर्जीव व्यक्ति में प्राणों का संचार हो गया हो अथवा मूक बांसुरी में किसी ने संगीत भर दिया हो। भारत स्वतंत्र हो गया पर उसका कोई अपना संविधान नहीं था। सन् 1950 में देश में चुने हुए प्रतिनिधियों द्वारा नया संविधान बनने पर 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस घोषित किया गया।
गणतंत्र का अर्थ है सामुदायिक व्यवस्था भारत में ऐसे शासन की स्थापना हुई जिसमें देश के विभिन्न दलों, वर्गों एवं जातियों के प्रतिनिधि मिलकर शासन चलाते हैं। इसीलिए भारत की शासन पद्धति को गणतंत्र की संज्ञा दी गई और इस दिन को गणतंत्र दिवस के नाम से सुशोभित किया गया।
26 जनवरी का दिन बहुत पहले ही मनाना आरंभ कर दिया गया था। इसलिए यह दिन राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में भी अमर है। 26 जनवरी, 1929 ई० को लाहौर में रावी नदी के तट पर एक विशाल जन-समूह के सामने स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी पंडित जवाहर लाल नेहरू ने यह घोषणा की थी -“हम भारतवासी आज से स्वतंत्र हैं, ब्रिटिश सरकार को हम अपनी सरकार नहीं मानते। यदि ब्रिटिश शासक अपनी खैर चाहते हैं तो वे यहां से चले जाएं और खैरियत से नहीं जाएंगे तो हम आखिरी दम तक भारत की आजादी के लिए लड़ते रहेंगे और अंग्रेजों को चैन से नहीं बैठने देंगे।” ।
इस घोषणा से भारतीयों के हृदय जोश से भर गए। स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष तीव्र हो गया। अंग्रेन्ती सरकार पागल हो गई। उसने देश भक्तों पर मनमाने अत्याचार किए सरकार का दमन-चक्र चरम सीमा पर पहुंच गया था, परंतु भारतीय अपने संकल्प में दृढ़ थे। वे हिमालय के समान अडिग बने रहे। आखिर 15 अगस्त, 1947 ई० को स्वतंत्रता का सूर्योदय हुआ।
स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व 26 जनवरी मनाने का लक्ष्य और था और स्वतंत्रता के बाद कुछ और पहले हम स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए अपनी प्रतिज्ञा दुहराते थे और स्वतंत्रता संग्राम को गति देने के लिए अनेक प्रकार की योजनाएं बनाते थे। अब 26 जनवरी के दिन हम भारत की खुशहाली के लिए कामना करते हैं और अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण बनाए रखने के लिए प्रतिज्ञा करते हैं। हम, हमारी सरकार ने जो कुछ किया है, उस पर दृष्टिपात करते हैं। भविष्य में क्या करना है, इसके लिए योजनाएं बनाते हैं। यह पर्व बड़े हर्ष एवं उल्लास के मध्य मनाया जाता है।
भारत को पूरी तरह से गणराज्य बनाने के लिए राष्ट्रीय संविधान की आवश्यकता थी। संविधान के निर्माण में लगभग 23½ वर्ष लग गए। 26 जनवरी, 1950 को इस संविधान को लागू किया गया और भारत को पूर्ण रूप से गणराज्य की मान्यता प्राप्त हो गई। देश रत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति बने और पं० जवाहरलाल नेहरू प्रथम प्रधानमंत्री यह दिवस प्रथम बार बड़े समारोह में मनाया गया। हर्षातिरेक से नागरिक झूम उठे। ऐसा लगता था जैसे किसी निर्धन को रत्नों की निधि मिल गई हो कुटिया तक जगमगा उठी। उत्सव दिल्ली में जिस शान से मनाया गया, उसे दर्शक कभी भूल नहीं सकते। उसके बाद प्रत्येक वर्ष यह मंगल पर्व बड़े उत्साह से मनाया जाता है। देश भर में अनेक स्थानों पर विविध कार्यक्रमों की योजना बनाई जाती है। सांस्कृतिक प्रदर्शन और नृत्य होते हैं। सैनिकों की परेड होती है। वायुयानों से पुष्प वर्षा की जाती है।
26 जनवरी के दिन आजादी को कायम रखने के लिए देशवासी प्रतिज्ञा करते हैं। वे देश के निर्माण एवं उत्थान के लिए कृत संकल्प होते हैं। यह राष्ट्रीय पर्व देश के निवासियों में नया उत्साह, नया बल, नई प्रेरणा और नई स्फूर्ति भरता है। देशभक्त शहीदों को श्रद्धांजलियां’ अर्पित की जाती हैं। 26 जनवरी के दिन राष्ट्रपति भवन में विशेष कार्यक्रम होते हैं। वे देश के सैनिकों, साहित्यकारों, कलाकारों आदि को उनकी उपलब्धियों पर विभिन्न प्रकार के पदक प्रदान करते हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भी देश ने अभी तक भरपूर उन्नति नहीं की। इस कारण भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता, भाषा-भेद, जातिवाद एवं संकीर्ण दृष्टिकोण है। हमें चाहिए कि हम इन दोषों का परित्याग कर देशोद्धार के कार्यों में लीन हो जाएं। तभी हमारे देश में वैभव का साम्राज्य स्थापित हो सकता है और देश में सर्वांगीण उन्नति हो सकती है। अज्ञेय जी ने 26 जनवरी को आलोक-मंजूषा की संज्ञा देते हुए भारतीय नागरिकों को संबोधित करते हुए कहा –
सुनो हे नागरिक !
अभिनव सभ्य भारत के नये जनराज्य के सुन !
यह मंजूषा तुम्हारी है
पला है आलोक चिर-दिन तुम्हारे स्नेह से
तुम्हारे ही रक्त से।
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