Journey of the dynasty of Samajwadi Party and founder मुलायम सिंह यादव

mulayam singh yadav







Contents

समाजवादी पार्टी और संस्थापक मुलायम सिंह यादव के वंश का सफर–

mulayam singh yadav 1960 का दशक देश में समाजवाद की लहर थी डॉ राम मनोहर लोहिया समाजवाद के सबसे बड़ेनेता सबसे छोटे से गांव के आसपास समाजवादियों की कई रैलियां निकल रहे थे| इस साल समाजवादी सिद्धांतों और गरीबों में समानता की बात होती | राज्य में कुछ वक्त सिंचाई के बढ़े हुए दामों को लेकर किसानों में उत्साह था डॉक्टर लोहिया ने यूपी में कांग्रेस सरकार के खिलाफ मुहिम छेड़ दी थी लोहिया के भाषणों से प्रभावित मुलायम आंदोलन की रैलियों में सबसे आगे देखते राम मनोहर लोहिया और  कई बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया 15 साल के मुलायम भी गिरफ्तार हुए |

जब वापस लौटे तू समूचे गांव ने उनको अपने सिर आंखों पर बैठा लिया कुश्ती के साथ-साथ समाजवादी आंदोलन में मुलायम की दिलचस्पी बढ़ने लगी | बीए के बाद मुलायम सिंह का कोर्स करने के लिए शिकोहाबाद कॉलेज आ गए|  शादी बचपन में ही हो गई थी इसलिए घर चलाने के लिए 1965 में मुलायम करहल के जैन इंटर कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाने  के साथ-साथ दंगल में लड़ते और समाजवादियों की रैलियों में जाते हुए मास्टर जी कहकर बुलाता | मैनपुरी के एक ऐसे ही दंगल में जसवंत नगर के एमएलए नाथू सिंह की नजर मुलायम पर पडी| Mulayam singh yadav ने अपने से ताकतवर पहलवान को पस्त कर दिया |

1967 में विधानसभा के चुनाव आयुक्त नत्थू सिंह ने  खुद कहा ये लडका ईमानदार है| अपने भाई बंधु  के साथ मिलकर मुलायम गांव कस्बों में साइकिल से प्रचार करने के लिए निकल पड़े मुकाबला कांग्रेस के बड़े दिग्गज नेता लाखन सिंह के खिलाफ पहला चुनाव लडा| अपने पहले election में दिग्गज नेता लाखन सिंह से  बमफर वोट से जीत हसील की| 28 साल की उम्र में राज्य के सबसे कम उम्र के एमएलए बने| Chaudhari Charan Singh के मौत के बाद लोकदल पार्टी टूट गई अजीत सिंह लोकदल की कमान अपने हाथों में रखना चाहते थे|

उनका आरोप था कि मुलायम पार्टी में मनमाने फैसले लेते हैं आखिरकार अजीत सिंह और कांग्रेस के दांवपेच में मुलायम के हाथ से विपक्ष के नेता की कुर्सी निकल गई| Mulayam Singh ने मौका गवाया नी लेफ्ट और चंद्रशेखर की जनता पार्टी सहित सात दलों को मिलाकर क्रांति मोर्चा बनाया इनको क्रांति रथ का रूप दिया और यूपी के दौरे पर निकल गए|

Mulayam Singh

Mulayam Singh ने  लखनऊ में चंद्रशेखर हिम्मती नंदन बहुगुणा हरकिशन सिंह सुरजीत रामकृष्ण हेगड़े जैसे बड़े बड़े विपक्षी नेता उस रैली में आए और मुलायम के मुख्यमंत्री बनने की कहानी सुरु की | वो ज्यदा वक्त लखनऊ में बिताते परिवार के लिए वक्त कम रहता मुलायम के विधानसभा इलाकों की जिम्मेदारी भाई शिवपाल यादव पर रहती वंशवाद के विरोधी रास्तों पर चलने वाले मुलायम जाने अनजाने अपने भाइयों के राजनीति में आगे बढ़ने का जरिया बन गए थे| केंद्र में कांग्रेस सरकार भूमि दलाली के आरोपों से घिरी हुई थी चुनाव सिर पर थे जनता पार्टी के लिए सरकार को घेरने का इससे अच्छा मौका नहीं था|

मुलायम जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष थे वह पूरे राज्य में रैलियों और प्रदर्शन से राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ जन आंदोलन चला रहे थे आखिरकार मुलायम अग्नि परीक्षा में पास हो गए उत्तर प्रदेश में 1989 का विधानसभा चुनाव मुलायम के नेतृत्व में लड़ा गया था इस वजह से उनका मुख्यमंत्री बनना तय था और उनके बीच आ गए उनके धुर विरोधी अजीत सिंह| BJP की विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के साथ मिलकर अयोध्या में राम शीला यात्रा शुरू कर दी 4 महीने बाद कारसेवक अयोध्या में जमा होने लगे आखिरकार कारसेवकों को विवादित  बाबरी मस्जिद की ओर बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी दरजानो सहायक की मौत हो गई और उनकी सरकार 1 साल 6 महीने ही चल पाई और अप्रैल 1991 में मुलायम सरकार गिर गई|

अब तक दूसरी पार्टियों के सहारे राजनीति कर रहे मुलायम को अपनी एक पार्टी की जरूरत महसूस हुई है 4 अक्टूबर 1992 को उन्होंने लखनऊ की बेगम हजरत महल पार्क में समाजवादी पार्टी के नाम से एक नई पार्टी की स्थापना की जब पिता ने समाजवादी पार्टी बनाई दो अखिलेश यादव कर रहे थे इस खबर का पता चला समाजवादी पार्टी बनने के 2 महीने बाद मुलायम को एक और मौका मिला बाबरी मस्जिद को गिराए जाने के दिन 6 दिसंबर 1992 की शाम कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया गया इसी साल मुलायम के भाई रामगोपाल यादव राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो गए| 4 दिसंबर 1993 को मुलायम दूसरी बार यूपी के सीएम बने लेकिन 6 महीने के बाद बीएसपी ने समर्थन वापस ले लिया इस बीच मुलायम के यदुवंश से दूसरी पीढ़ी राजनीति में उतरे मुलायम के सबसे बड़े भाई रतन सिंह यादव के बेटे अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठाया गया|



ये भी पढ़े—

Akhilesh Yadav Biography in Hindi: अखिलेश यादव जीवन परिचय

मुलायम राज्य के छोड़कर देश की राजनीति की राह पकड़ ली जसवंतनगर कितनी अपने भाई शिवपाल के लिए छोड़ दी जूती से पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे और अब तक विधानसभा में जमे हुए हैं|

मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लड़ कर पहली बार संसद पहुंचे और देवेगौड़ा की यूनाइटेड फ्रंट सरकार में रक्षा मंत्री बने देवेगौड़ा कांग्रेस का समर्थन न मिलने से उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा यूनाइटेड फ्रंट के केंद्रीय नेताओं में मुलायम की सबसे मजबूत थी| और आखिरकार आई के गुजराल के नाम पर सहमति बनी और मुलायम रक्षा मंत्री ही रह गए| मुलायम के राज में उनके अपने यादव वंश ने राजनीति की सीढ़ियां काफी तेजी से चल भाई बेटे बहू भतीजे आप तो यादव परिवार के करीब 20 सदस्य किसी न किसी रूप में राजनीति नाथ मुलायम सिंह ने 14 साल पहले कन्नौज में अपने बेटे अखिलेश यादव को मैदान में उतारा तब वह विदेश से पढ़ाई करके घर लौटे राजनैतिक विरासत और मुलायम अखिलेश को मिला|

मुलायम फिर से यूपी लौटे अब मुलायम ने अखिलेश के लिए राजनीति का रास्ता खोला अखिलेश एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म कर देश लौटे थे मुलायम को बेटे के राजनीतिक भविष्य की चिंता सताने लगी लोकसभा उपचुनाव में चुनाव प्रचार में भाग लिया इसी दौरान मुलायम सिंह के साथ ही और राजनीति के धुर विरोधी जनेश्वर मिश्र ने कहा कि यह सही वक्त है अखिलेश को राजनीति में ले आओ| जिस वक्त मुलायम अखिलेश की सियासत में ओपनिंग के बारे में सोच रहे थे |उसी वक्त अखिलेश अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ देहरादून में थे 24 नवंबर 1999 को डिंपल से अखिलेश की शादी हुई दोनों शॉपिंग मॉल में घूम रहे थे कि अचानक मुलायम का अखिलेश के पास पहुंचा|

अखिलेश ने पहली बार कन्नौज से नामांकन भरा मुलायम सिंह के विरोधियों ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया आरोप लगाया कि मुलायम सिंह भाई भतीजावाद चला रहे हैं जो उनके गुरु डॉ राम मनोहर लोहिया के समाजवादी विचारधारा से बिल्कुल उलट है| बहुजन समाज पार्टी ने अखिलेश की हार सुनिश्चित करने के लिए अकबर अहमद डंपी को मैदान में उतार दिया बेटे को पहली बार जिताने के लिए मुलायम ने एक करती है अखिलेश भी वोट मांगने घर घर पहुंचे नतीजे सामने आए तो अखिलेश ने बीएसपी के अकबर अहमद डंपी को 58725 वोटों से हरा दिया और इसके साथ ही समाजवादी पार्टी में अखिलेश की बड़ी राजनीतिक पारी की शुरुआत हुई| अखिलेश को एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई उन्हें समाजवादी पार्टी के कई मुख्य संगठनों का अध्यक्ष बनाया गया पार्टी की यूथ ब्रिगेड को खड़ा करने और पूरे राज्य में प्रदर्शन का जिम्मा मेला अखिलेश को पार्टी में पड़े रोल के लिए तैयार कर रहे थे मुलायम|

2003 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव हुए 143 सीटों के साथ समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बन गई 29 अगस्त 2003 को मुलायम तीसरी बार मुख्यमंत्री बने| मई 2007 में मायावती ने फिर सत्ता में वापसी की मुलायम को लगा पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए नया जोश उम्मीद और एक नई छवि की जरूरत है अखिलेश को इस बात का पूरा अनुमान था| कन्नौज और फिरोजाबाद से लोकसभा चुनाव लड़ाया गया और जीत गए| अखिलेश  ने महसूस किया कि जनता समाजवादी पार्टी से दूर होती जा रही है नौजवान खासतौर से समाजवादी पार्टी को पुराने जमाने की पार्टी के रूप में देख रहे हैं 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के सभी को बदलना अखिलेश की सबसे बड़ी चुनौती थी| 2012 के इलेक्शन में अखिलेश ने जनता के बीच जाकर के पूरी रथ यात्रा के साथ पूरी साइकिल के साथ जो पूरे प्रदेश में दौरा किया|

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के ऐलान के बाद अखिलेश पूरे राज्य के दौरे पर निकल पड़े समाजवादी पार्टी के क्रांति रथ पर गांव-गांव घूम कर उन्होंने पार्टी के लिए वोट मांगा अखिलेश यादव का सीधा मुकाबला मायावती और कांग्रेस से था| जब नतीजे सामने आए तो मायावती के साथ-साथ कांग्रेस के भी होश उड़ गए 403 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी को 224 सीटों पर जीत हासिल हुई थी मायावती की खुशी भी चुकी थी कांग्रेस बुरी तरह से हार चुकी थी पूरे उत्तर प्रदेश में उसे केवल 28 सीटें मिली थी मुलायम सिंह को मुख्यमंत्री का नाम तय करना था रामगोपाल यादव ने खुलेआम अखिलेश मुख्यमंत्री पद के लिए लिया इस बात से शिवपाल सिंह यादव नाराज हो गए शिवपाल चाहते थे कि मुलायम सिंह कम से कम 2 साल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर रहे|

अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री बने| कन्नौज लोकसभा सीट से 1 बार फेल डिंपल को राजनीति में लाने की तैयारियां शुरू हो गई पूरा यादव कुनबा बहू को जिताने में लग गया उनके सामने किसी भी पार्टी ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा निर्विरोध चुन कर संसद पहुंची डिंपल यादव वंश की पहली महिला नहीं थी जिन्होंने राजनीति में कदम रखा था डिंपल से पहले मुलायम के सगे भाई राजपाल यादव की पत्नी प्रेमलता यादव राजनीति में लाई जा चुकी है वह फिलहाल इटावा जिला पंचायत की अध्यक्ष है मुख्यमंत्री बनने के तीन चार महीने बाद से ही अखिलेश के बारे में कानाफूसी होने लगी मुख्यमंत्री तो अखिलेश है लेकिन यूपी सरकार मुलायम सिंह ही चला रहे हैं रिमोट कंट्रोल नेता जी के हाथों में ही है| यूपी के यादव वंश की विरासत मुलायम अपने बेटे अखिलेश को सौंप चुके हैं पार्टी में अखिलेश को चुनौती देने वाला कोई नहीं है नेता जी का वंशज समाजवादी पार्टी की उनकी विरासत को कितना आगे ले जाएगा यह कुछ दिनों बाद होने वाले चुनाव से साफ हो जाएगा|


About admin

मैं सोनू यादव एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर हू, मैंने अलग- अलग डोमेन सूचना प्रौद्योगिकी,ब्लॉगिंग, पोकर गेमिंग, ई-स्पोर्ट्स, आई-गेमिंग, ई-कॉमर्स, और ई-लर्निंग, जॉब पोर्टल, जीपीएस टेक्नोलॉजी सहित विभिन्न उद्योगों में 10 वर्षों से काम कर रहा हु| मै हिंदी से जुड़ा हु, हिंदी मेरे लिए एक बर्दान है और ब्लॉग्गिंग मेरी एक पैशन है, मै अपने बिचारो को लोगो तक पहुचाने की कोशिश करता हु, और करता रहूँगा|

View all posts by admin →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *