शिक्षा का महत्त्व | Shiksha ka mahatav

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शिक्षा का महत्त्व

रामसेवक एक किसान है। उसके दो बेटे हैं-अमित और सुमिता अमित बढ़ा तथा सुमित छोटा है। रामसेवक दोनों बेटों की आदतों से बहुत दुःखी था। न तो वे पढ़ाई में ध्यान देते थे और न ही खेती के काम में उसका हाथ बंटाते थे।

स्कूल में अध्यापक उनसे रुष्ट रहते थे और घर पर माता-पिता उन्हें दोनों जगह डौट खानी पड़ती थी। वे अन्य बालकों को कक्षाओं में पढ़ते देखते तो उन्हें अपने ऊपर दुःख होता। ये सोचा करते, “न जाने और बालक कैसे पढ़ लेते हैं। हमारा तो मन ही नहीं लगता पढ़ाई में।” खिए एक दिन वे विद्यालय छोड़कर भाग गए। “अब कहाँ जाएँ ?” उन्होंने सोचा घूमते-घूमते वे एक बाजे की दुकान पर गए और बैंड मास्टर से पूछताछ करने लगे।

सुमित             : श्रीमान जी, यदि आप हमें बाजा बजाने के लिए नौकर रख लें |

बैंड मास्टर     :  ठीक है   लेकिन बाजा सुर में बजाना।

(सुमित तुरही उठाता है और बेसुरी बजाने लगता है।)

बैंड मास्टर     :  तुम्हें ठीक से बजाना नहीं आता ?

सुमित             : हम तो ऐसे ही बजाएँगे।

बैंड मास्टर     : तो जाओ यहाँ से।

(दोनों वहाँ से चल देते हैं और आपस में बातचीत करते हुए मैदान में जा पहुँचते हैं। वहाँ कुछ बच्चे क्रिकेट खेल रहे होते हैं।)

अमित              :  क्या तुम हमें भी खिला लोगे ?

एक लड़का         :  (अमित के हाथ में बैट देते हुए) यह लो और खेलो। (अमित बॉल पर शॉट मारता है। एक लड़का उसे कैच  करता है |

दूसरा लड़का      : तुम आउट हो गए हो, बैट दो।

अमित                : नहीं, मैं नहीं दूंगा। मैं और खेलूँगा।

तीसरा लड़का    : खेलना हो खेलो, नहीं तो जाओ।



दोनों चल देते हैं। घूमते-घूमते वे कपड़ों के एक शोरूम पर जाते हैं और शोरूम के मालिक अपनी नौकरी की बात करते हैं। वह तैयार हो जाता है। ग्राहक आकर कपड़ा दिखाने को कहते हैं। वे उन्हें कपड़ा दिखाते हैं, पर ग्राहकों द्वारा बार थान खुलवाने पर उनसे लड़ते हैं। किसी तरह कपड़ा पसन्द आने पर अमित थान में से पाँच म कपड़ा काटता है। वह टेढ़ी-मेढ़ी कटाई करता है। मालिक उसे समझाने का प्रयत्न करता है। किंतु वह उसकी नहीं सुनता।

मालिक        : तुम्हें ठीक-ठाक कटाई करनी हो तो करो, नहीं तो यहाँ से चलते   बनो|

अमित      : सुमित, लगता है यहाँ भी अध्यापकजी आ गए हैं। चलो, यहाँ से चलते है।

सुमित      : यहाँ तो सभी जगह अध्यापक जी हैं। इससे अच्छा तो हम स्कूल ही चले और पढ़ें|

अमित      : हाँ यही ठीक है। हमें स्कूल ही जाना चाहिए।

(दोनों स्कूल चले जाते हैं।)

अध्यापक    : सुमित और अमित, तुम लोग कहाँ चले गए थे ? तुम्हारे माता-पिता तुम्हारे लिए दुःखी हो रहे हैं।

सुमित और अमित     : गुरुजी, हम लोगों को ज्ञान प्राप्त हो गया है। अब हम पढ़ना चाहते हैं। अब हम कभी स्कूल छोड़कर कहीं नहीं जाएँगे |

शिक्षा मानव का सबसे अच्छा मित्र है |

 



 

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