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होली का त्योहार
holi festival भूमिका, वसंत का आगमन, ऐतिहासिकता, प्रकृति का उल्लास,
भेद-भावों की समाप्ति, उपसंहार
मुसलमानों के लिए ईद का, ईसाइयों के लिए क्रिसमस (बड़े दिन) का जो स्थान है, वही स्थान हिंदू त्योहारों में holi festival का है। यह वसंत का उल्लासमय पर्व है। इसे ‘वसंत का यौवन’ कहा जाता है। प्रकृति सरसों के फूलों की पीलो साड़ी पहन कर किसी की बाट जोहती हुई प्रतीत होती है। हमारे पूर्वजों ने होली उत्सव को आपसी प्रेम का प्रतीक माना है। इसमें छोटे-बड़े सभी मिलकर पुराने भेद-भावों को भुला देते हैं।
होली मनुष्य मात्र के हृदय में आशा और विश्वास को जन्म देती है। नस-नस में नया रक्त प्रवाहित हो उठता है। आबालवृद्ध सब में नई उमंगें भर जाती हैं। निराशा दूर हो जाती है। धनी निर्धन सभी एक साथ मिल कर होली खेलते – हैं। उनमें किसी तरह का भेद-भाव नहीं रहता।
होली प्रकृति की सहचरी है। वसंत में जब प्रकृति के अंग-अंग में यौवन फूट पड़ता है तो होली का त्योहार उसका शृंगार करने आता है। होली ऋतु-संबंधी त्योहार है। शीत काल की समाप्ति और ग्रीष्म के आरंभ, इन दो ऋतुओं को मिलाने वाले संधि काल का पर्व ही होली है। शीत की समाप्ति पर किसान आनंद विभोर हो जाते हैं। उनका साल भर का किया गया कठोर परिश्रम सफल होता है। फसल पक कर तैयार होने लगती है।
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कहते हैं कि भक्त प्रहलाद भगवान् का नाम लेता था। उसका पिता हिरण्यकश्यप ईश्वर को नहीं मानता था। वह प्रहलाद को ईश्वर का नाम लेने से रोकता था। प्रहलाद उसे किसी भी रूप में स्वीकार करने को तैयार न था। प्रहलाद को अनेक दंड दिए गए, परंतु भगवान् की कृपा से उसका कुछ नहीं बिगड़ा। हिरण्यकश्यप की बहन का नाम होलिका था। उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। वह अपने भाई के आदेश पर प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर चिता में बैठ गई। भगवान् की महिमा से होलिका उस चिता में जल कर राख हो गई। प्रहलाद का बाल भी बांका न हुआ। यही कारण है कि आज होलिका जलाई जाती है ।
वास्तव में होली का त्योहार तो बड़ा ऊँचा दृष्टिकोण लेकर प्रचलित किया गया था। आज कुछ लोगों ने इसका रूप बिगाड़ कर रख दिया है। सुंदर एवं कच्चे रंगों के स्थान पर कुछ लोग काली स्याही और तवे की कालिख का प्रयोग करते हैं। कुछ मूढ़ व्यक्ति एक-दूसरे पर गंदगी फेंकते हैं। प्रेम और आनंद के त्योहार को घृणा और दुश्मनी का त्योहार बना दिया जाता है। उत्सव के आयोजकों द्वारा इन बुराइयों को कम किया जाना चाहिए।
holi festival के पवित्र अवसर पर हमें ईर्ष्या, द्वेष, कलह आदि बुराइयों को दूर भगाना चाहिए। समता और भाई-चारे का प्रचार करना चाहिए। छोटे-बड़ों को गले मिल कर एकता का उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए। होली का त्योहार मनाना तभी सार्थक होगा । अन्यथा घृणा, द्वेष और विषमता के रावण को जलाए बिना कोरी लकड़ियों की होली जलाना व्यर्थ होगा।