दीपावली अथवा मेरा प्रिय पर्व
पावन पर्व दीपमाला का, आओ साथी दीप जलाएं।
सब आलोक मंत्र उच्चारै, घर-घर ज्योति ध्वज फहरायें।
भारत देश त्योहारों का देश है। ये त्योहार जीवन और जाति में प्राणों का संचार करते हैं। ये हमारे लिए सबसे बड़ी प्रेरक शक्तियां लेकर आते हैं। ये हमारी सांस्कृतिक परंपरा, धार्मिक भावना, राष्ट्रीयता, सामाजिकता तथा एकता की कड़ी के समान हैं। प्रत्येक त्योहार की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। त्योहार हमारे नीरस जीवन को आनंद और उमंग देते हैं। भारत के पर्व किसी-न-किसी सांस्कृतिक अथवा सामाजिक परंपरा के रूप में स्मरण किए जाते हैं। ये हमारी आस्तिकता और आस्था के भी प्रतीक हैं। दीपावली भी भारत का एक सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय पर्व है। यह पर्व अन्य पर्वों में प्रमुख है। जगमगाते दीपों का यह त्योहार सबके आकर्षण का केंद्र बनकर आता है। इस पर्व के आने से पूर्व लोग घरों, मकानों और दुकानों की सफ़ाई करते हैं। प्रत्येक वस्तु में नई शोभा आ जाती है। सब पर्वो का सम्राट् यह पर्व सर्वत्र आनंद और हर्ष की लहर बहा देता है।
दीपावली के इस मधुर पर्व के साथ अनेक प्रकार की कहानियां जुड़ी हैं। इन कथाओं में सबसे प्रमुख कथा भगवान् राम की है। इस दिन श्री रामचंद्र जी अत्याचारी और अनाचारी रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासी अपने मनचाहे प्रिय तथा श्रेष्ठ शासक राम को पाकर गद्गद् हो गए। उन्होंने उनके आगमन की खुशी में दीप जलाए।
ये दीप उनकी प्रसन्नता के परिचायक थे। तब से इस पर्व के मानने की परंपरा चल पड़ी। कुछ कृष्ण भक्त इस पर्व का संबंध भगवान् कृष्ण से जोड़ते हैं। उनके अनुसार इसी दिन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करके उसके चंगुल से सोलह हज्जार रमणियों को मुक्त करवाया था। इस अत्याचारी शासक का संहार देखकर लोगों का मन मोर नाच उठा और उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए दीप जलाए।
एक पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन समुद्र मंथन हुआ था। समुद्र से लक्ष्मी के प्रकट होने पर भी देवताओं से ने उनकी अर्चना की। कुछ भक्तों का कथन है कि धनतेरस के दिन भगवान् विष्णु ने नरसिंह के रूप में प्रकट होकर अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा की थी। सिक्ख धर्म को मानने वाले कहते हैं कि इसी दिन छठे गुरु श्री हरगोबिंद जी ने जेल से मुक्ति पाई थी। महर्षि दयानंद ने भी इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था।
दीपावली से संबंधित सभी कहानियां दीपावली नामक पर्व का महत्त्व बताती हैं। वास्तव में इस महान् पर्व के साथ जितनी भी कहानियां जोड़ी जाएं, कम हैं। यह पर्व जन-जन का पर्व है। सभी धर्मों और जातियों के लोग इसे समान रूप से आदर की दृष्टि से देखते हैं।
दीपावली स्वच्छता का भी प्रतीक है। छोटे-बड़े, धनी-निर्धन इस पर्व को उत्साह से मनाते हैं। इस दिन की साज सज्जा तथा शोभा का वर्णन करना सहज नहीं। बाजारों में रंग-बिरंगे खिलौनों की दुकानें सज जाती हैं। इस दिन बालकों का उत्साह अपने चरम पर दिखाई देता है। वे पटाखे चलाकर अपनी प्रसन्नता का परिचय देते हैं। मिठाई की दुकानों की सजावट वर्णनीय होती है। दीपावली की रात्रि का दृश्य अनुपम होता है। रंग-बिरंगे बल्चों की पंक्तियाँ सितारों से होड़ लगाती दिखाई देती हैं। आतिशबाजी के कारण वातावरण में गूंज भर जाती है। दीपावली अनेक दृष्टियों से महत्त्वपूर्ण पर्व है। व्यापारी लोग इस दिन को बड़ा शुभ मानते हैं। वे इस दिन अपनी बहियां बदलते हैं तथा नया व्यापार शुरू करते हैं। यह पर्व एकत्व का भी प्रतीक है। सभी धर्मों के लोग इस पर्व को समान निष्ठा के साथ मनाते हैं। अतः यह पर्व राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक एकता का भी साधन है। दीपावली के अवसर पर जो सफाई की जाती है, वह स्वास्थ्य के लिए भी बड़ी लाभकारी होती है क्योंकि इसके पूर्व वर्षा ऋतु के कारण घरों में दुर्गंध भर जातो है। वह दुर्गंध इन दिनों सुगंधि के रूप में बदल जाती है। दीपावली मनुष्य की वैमनस्य भावना को समाप्त कर एकता अपनाने की प्रेरणा देती है। मनुष्य कर्त्तव्य-पालन में सजगता का अनुभव करता है।
दुःख की बात है कि दीपावली जैसे महत्त्वपूर्ण पर्व पर भी कुछ लोग जुआ खेलते तथा शराब पीते हैं। जो व्यक्ति जुए में हार जाता है, उसके लिए यह पर्व अभिशाप के समान है। ऐसे लोग दीपावली की उज्ज्वलता पर कालिमा पोत कर नास्तिकता, कृतघ्नता तथा अराष्ट्रीयता का परिचय देता है।
दीपावली भारत का एक राष्ट्रीय एवं सांस्कृतिक पर्व है। इसके महत्त्व को बनाये रखने के लिए आवश्यक है। कि हम अपने दोषों का परित्याग करें। जुआ खेलने और शराब पीने वालों का विरोध करें। तभी हम ऐसे पर्वों के प्रति श्रद्धा और आस्तिकता का परिचय दे सकते हैं। पर्व देश और जाति की सबसे बड़ी संपत्ति हैं। इनके महत्त्व को समझना तथा तथा इनके आदर्शों का पालन करना चाहिए। प्रत्येक भारतवासी का यह परम कर्त्तव्य है कि वे इस महान्, उपयोगी एवं सांस्कृतिक पर्व को सामाजिक कुरीतियों से बचाएं।
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