Dahej Pratha—
Dahej Pratha इस जमाने में दो तरह के हैं पाप एक दहेज लेना दूसरा दहेज देना
मिटा दो रस्मों के ऐसे अभिशाप को जो मजबूर कर दे लड़की के बाप को
पढ़े लिखे हैं लोग बहुत
आखिर कब इंसाफ होगा
आज का दूल्हा कल लड़की का बाप होगा आज तू दहेज लेकर मुस्करा रहा है।
कल तुझसे कोई और लेकर मुस्कराएगा उठ सँभाल ले अपने आप को
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बचा ले भूखे सोने वाले बाप को नींव तूने रख दी अब महल बन जाएगा
समाज एक दिन इस रस्म को हटाएगा आज में समझा रही हूँ
कल हर आदमी समझाएगा न्याय पैसे के बदले न बिकते रहें।
कातिलों का मनोबल न फूल फले कल्ल सपने न होते रहें हर कहीं
इस तरह आर्थियों में दुल्हन की विदाई न हो इसलिए राह संघर्ष की हम चुनें जिंदगी आसूओं से नहाई न हो।