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छठ पूजा–
Chhath puja : चार दिनों तक चलने वाले छठ महापर्व का आज मुख्य त्योहार है, जिममें निर्जला व्रत रखते हुए शाम के समय अस्त होते सूर्य को अर्ध्य दिया जाएगा और फिर अगले दिन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देकर पारण कर व्रत संपन्न होगा। भविष्य पुराण के अनुसार श्रीकृष्ण ने सूर्य को संसार के प्रत्यक्ष देवता बताते हुए कहा है कि इनसे बढ़कर दूसरा कोई देवता नहीं है। सम्पूर्ण जगत इन्हीं से उत्पन्न हुआ है और अंत में इन्हीं में विलीन हो जाएगा। जिनके उदय होने से ही सारा संसार चेष्टावान होता है एवं जिनके हाथों से लोकपूजित ब्रह्मा और विष्णु तथा ललाट से शंकर उत्पन्न हुए हैं।
सूर्योपनिषद के अनुसार सूर्य की किरणों में समस्त देव, गंधर्व और ऋषिगण निवास करते हैं। सूर्य की उपासना के बिना किसी का कल्याण संभव नहीं है,भले ही अमरत्व प्राप्त करने वाले देवता ही क्यों न हों। स्कंद पुराण में सूर्य को अर्घ्य देने के महत्व पर कहा गया है कि सूर्य को बिना जल अर्घ्य दिए भोजन करना भी पाप खाने के समान है एवं सूर्योपासना किए बिना कोई भी मानव किसी भी शुभकर्म का अधिकारी नहीं बन सकता है।
छठ पूजा–
छठ पूजा में डूबते हुए सूर्य की होती है पूजा chhath puja के तीसरे दिन शाम को नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इसके पीछे धार्मिक मान्यता है कि अस्ताचलगामी सूर्य अपनी दूसरी पत्नी प्रत्यूषा के साथ रहते हैं, जिनको अर्घ्य देना तुरंत मनवांछित फल प्रदान करता है। जो लोग अस्ताचलगामी सूर्य की आराधना करते है उन्हें प्रात: काल की उपासना भी अवश्य करनी चाहिए।शास्त्रों के अनुसार पूरे दिन में सूर्य के तीन स्वरूप होते हैं।उदय के समय सूर्य ब्रह्म स्वरूप होते हैं, दोपहर में विष्णु और संध्या काल में शिव।
सुबह सूर्य की आराधना करने से स्वास्थ्य बेहतर होता है। दोपहर की आराधना करने से नाम और यश की प्राप्ति होती है एवं सांयकाल की उपासना सम्पन्नता प्रदान करती है एवं अकाल मृत्यु से रक्षा होती है।ये भी माना जाता है कि डूबते सूर्य देव को अर्घ्य देने से जीवन में आर्थिक, सामाजिक, मानसिक, शारीरिक रूप से होने वाली हर प्रकार की मुसीबतें हमेशा दूर रहती हैं। इसका मुख्य संबंध संतान सुख से है। इसलिए छठ पर्व
ऐसे शुरू हुई डूबते हुए सूर्य की पूजा–
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय राजा कार्तवीर्य धरती पर राज करते थे। वे नियमित रूप से उगते सूर्य की पूजा करते थे। इसके बावजूद राजा के 99 पुत्र हुए लेकिन सभी की मौत हो गई। जिसके बाद राजा ने नारद जी से संतान के जीवित रहने का उपाय पूछा। नारद मुनि ने कहा कि आप सुबह तो सूर्य की पूजा करते ही हैं, शाम के समय भी सूर्यदेव की पूजा करके अर्घ्य दीजिए। तब ,राजा ने नारद मुनि के कहने पर शाम के समय डूबते सूर्य की पूजा की, इसके फलस्वरूप राजा के 100वां पुत्र सहस्रबाहु हुआ जो जीवित रहा और पराक्रमी हुआ।