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भारतीय संविधान (Indian Constitution)
संविधान की रचना(Indian Constitution)– 1946 में कैबिनेट के अनुसार संविधान सभा के सदस्यों का चुनाव किया गया । कुल 284 सदस्य चुने गये । जिनमें 211 सदस्य कॉंग्रेस के एवं 73 सदस्य मुस्लिम लीग के थे । वास्तव में संविधान सभा में लिये 296 सदस्यों का चुनाव होना था , लेकिन बाकी सभी पद रिक्त रहे । संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसम्बर 1946 को वर्तमान संसद के केन्द्रीय कक्ष में हुई । 11 दिसम्बर को डॉ ० राजेन्द्र प्रसाद संविधान सभा के अध्यक्ष चुने गए और डॉ . भीमराव अम्बेडकर को संविधान प्रारूप समिति का अध्यक्ष चुना गया । संविधान के प्रारूप पर लगभग 8 महीने बहस हुई । अनेकों संशोधन हुए । संविधान सभा के 11 अधिवेशन हुए और कुल मिलाकर 2 वर्ष 11 महीने और 18 दिन के निरन्तर प्रयासों से 26 नवम्बर , 1949 को संविधान का निर्माण पूरा कर लिया गया । संविधान के कुल अनुच्छेद जैसे— नागरिकता , निर्वाचन , अन्तरिम संसद , अल्पकालिक एवं परवर्ती उपबंध आदि 26 नवम्बर को ही लागू कर दिये गये , लेकिन अपने अन्तिम रूप में 395 अनुच्छेद एवं 9 अनुसूचियों के साथ इसे 26 जनवरी , 1950 को लागू किया गया।
संविधान की प्रस्तावना(Indian Constitution) -संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि ” हम भारत के लोग , भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न , समाजवादी , धर्मनिरपेक्ष , लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा उसके समस्त नागिरकों को सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय , विचार , अभिव्यक्ति विश्वास , धर्म और उपासना की स्वतन्त्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र एकता और अखण्डता , सुनिश्चित करने वाली बन्धुता बढ़ाने के लिए दृढ़ – संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26-11-1949 ई ० को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
भारतीय संविधान के स्त्रोत – संविधान निर्माताओं के संविधान निर्माण से पूर्व विश्व के प्रमुख संविधानों का विस्तृत अध्ययन कर उनकी अच्छाइयों को संविधान में समाहित किया ।
संविधान का उद्देश्य – भारतीय संविधान का मुख्य उद्देश्य भारतीय जनता को निम्नलिखित अधिकार दिलाना है |
(क) न्याय – सामाजिक , आर्थिक एवं राजनीतिक |
(ख) स्वतन्त्रता – विचार , मत , विश्वास तथा धर्म की ।
(ग) समानता – पद एवं अवसर की ।
(घ) बन्धुत्व – व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता के लिए ।
नागरिकता – भारतीय संविधान में एकल नागरिकता का ही प्रावधान है अर्थात् संयुक्त राज्य अमेरिका की तरह दोहरी नागरिकता ‘ देश एवं राज्य ‘ की अलग – अलग नागरिकता का प्रावधान नहीं है। नागरिकता अधिनियम 1955 के अनुसार , ” जिस व्यक्ति का जन्म 26 जनवरी , 1950 या उसके पश्चात हुआ हो , जन्म से भारत का नागरिक होगा , किन्तु इस नियम के दो अपवाद हैं । प्रथम , विदेश के राजनैतिक कर्मचारियों के भारत में उत्पन्न होने वाले बच्चे और द्वितीय , शत्रुओं के अधीन भारत के किसी भाग में उत्पन्न होने वाले इनके बच्चे ।
- नागरिकता संशोधन अधिनियम 1986 के अनुसार 1955 के उपबन्धों में संशोधन किया गया —–
1.भारत में जन्म लेने वाला कोई व्यक्ति यदि भारत की नागरिकता लेना चाहता है , तो उसे 5 वर्ष यहाँ रहने का प्रमाण प्रस्तुत करना होगा । इससे पहले यह अवधि 6 मास की थी ।
2.किसी भी व्यक्ति का जन्म भारत में हो सिर्फ इस आधार पर उसे भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती । यहाँ जन्म लेने वाले के माता या पिता में से किसी एक को भारत का नागरिक होना आवश्यक है ।
3.प्रवासी ( विदेशी व्यक्ति ) के लिये भारत की नागरिकता पाने के लिये अब दस वर्ष यहाँ निवास करना होगा ।
4.इस संशोधन से भारतीय पुरुष से विवाह करने वाली विदेशी महिला को नागिरकता पाने अधिकार दिया गया है।
- नागरिकता की समाप्ति
1.भारतीय नागरिकता का स्वैच्छिक त्याग किया जा सकता है तथा विदेश की नागरिकता प्राप्त जा सकती है बशर्ते ऐसा करने का कारण कोई अपराध आदि न हो ।
2.यदि कोई व्यक्ति अन्य देश की नागरिकता ग्रहण करता है , तो उसकी भारत की नागरिका समाप्त हो जाती हैं ।
3.यदि कोई व्यक्ति अन्य देश की नागरिकता धोखे या कपट से ले ले तो यह अवैध है ।
4.जब कोई स्त्री या पुरुष किसी विदेशी पुरुष या स्त्री से विवाह करता है , तो उसे विदेशी नागरिकता मिलने पर यहाँ की नागरिकता खत्म हो जाती है ।
5.जब कोई व्यक्ति विदेश में जाकर वहाँ की सरकारी नौकरी करता है , तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है ।
- मौलिक अधिकार
ऐसे अधिकार जो किसी व्यक्ति के जीवन , स्वतन्त्रता एवं अभि व्यक्ति के लिये आवश्यक और जिन्हें राज्य के विरुद्ध न्यायपालिका का संरक्षण प्राप्त होता है मौलिक अधिकार कहलाते वर्गीकरण के आधार पर मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं —-
1.समता का अधिकार – अनुच्छेद 14 से 18 ।
2.स्वतन्त्रता का अधिकार– अनुच्छेद 23 से 24 |
3.शोषण के विरुद्ध अधिकार – अनुच्छेद 23 से 24 ।
4.धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार – अनुच्छेद 25 से 28
5.संस्कृति और शिक्षा पाने के अधिकार – अनुच्छेद 29 से 301
6.सम्पत्ति का अधिकार– अनुच्छेद 31 इस अधिकार को व 19 ( 1 ) ( च ) को 44 वें संविधान संशोधन 1978 के द्वारा समाप्त कर दिया गया है ।
7.संविधान उपचारों का अधिकार – अनुच्छेद 32|
- मौलिक कर्त्तव्य(Indian Constitution) — 42 वें संविधान संशोधन ( 1926 ) में संविधान के मूल अधिकारों तथा निर्देशक तत्त्वों के प्रारम्भिक भाग 3 व 4 के बाद मूल कर्त्तव्यों के शीर्ष ‘ क ‘ से एक नया भाग ‘ 4 अ ‘ जोड़ा गया इसमें अनुच्छेद ‘ 51 ए ‘ सम्मिलित कर मौलिक कर्तव्यों की व्यवस्था की गई है , ये मौलिक कर्तव्य——-
1.संविधान के आदर्शों और राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान ।
2.स्वतन्त्रता के आन्दोलन के प्रेरक आदर्शों का पालन करना ।
3.भारत की एकता , अखण्डता एवं प्रभुसत्ता की रक्षा करना प्रत्येक नागरिक का परम पवित्र कर्त्तव् है |
4.देश की रक्षा एवं राष्ट्र सेवा का कर्त्तव्य ।
5.विभिन्न समुदायों के बीच समरसता एवं भ्रातृत्व ( भाईचारा ) बनाये रखने का कर्त्तव्य सभी है ।
6.भारतीय संस्कृति की गौरवशाली परम्परा की रक्षा का कर्त्तव्य ।
7.प्राकृतिक पर्यावरण , जिसमें जीव भी शामिल है , की रक्षा का कर्त्तव्य ।
8.वैज्ञानिक दृष्टिकोण , मानववाद एवं ज्ञानार्जन का विकास करें ।
9.हिंसा से दूर रहते हुए सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करें ।
10.राष्ट्र की उन्नति के लिये व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कर्ष छूने का प्रयास ।
राज्य के नीति निदेशक तत्त्व(Indian Constitution) — राज्य के निदेशक तत्त्वों का वर्णन संविधान के भाग 4 में किया गया है । जिन्हें पूरा करना राज्य का पवित्रतम कर्त्तव्य माना गया है । इन्हें भारतीय संविधान में उपबन्धित करने की प्रेरणा आयरलैण्ड के संविधान से मिली है । नीति – निदेशक सिद्धान्तों का अवलोकन अनुच्छेद 36 से 51 तक किया गया है ।
अनुच्छेद 38 – राज्य लोक कल्याण की सुरक्षा और अभिवृद्धि के लिये सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करेगा ।
अनुच्छेद 39 – राज्य अपनी नीति इस प्रकार सुनिश्चित करेगा कि ( 1 ) सभी पुरुषों तथा स्त्रियों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो । ( 2 ) समुदाय की भौतिक सम्पदा का – स्वामित्व तथा नियन्त्रण इस प्रकार विभाजित हो जिससे सामूहित हो । ( 3 ) आर्थिक व्यवस्था इस प्रकार चले कि धन और उत्पादन के साधनों का सर्वसाधारण के लिए अहितकारी संकेषण हो । ( 4 ) स्त्रियों एवं पुरुषों के समान कार्य के लिये समान वेतन मिले । ( 5 ) आर्थिक आवश्यकता से विवश होकर नागरिकों को अनुकूल रोजगार न अपनाना पड़े और बच्चों व युवाओं को शोषण से बचाया जा सके ।
अनुच्छेद 39 – ए- राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक व्यवस्था इस तरह से काम करे कि न्याय समान अवसर के आधार पर सुलभ हो ।
अनुच्छेद 40 – राज्य अपनी आर्थिक सीमाओं के भीतर , काम पाने , शिक्षा पाने तथा बेकारी बुढ़ापा , बीमारी आदि अन्य अभावों में , लोकिहित में सहायता देने का उपबन्ध करेगा ।
अनुच्छेद 42 – राज्य काम की न्याय संगत और मानवी चित्त दशाओं की सुनिश्चित करने के लिये प्रसूति सहायका के लिये उपबन्ध करेगा ।
अनुच्छेद 43 – ए- राज्य उपयुक्त विधान द्वारा संगठनों के प्रबन्ध में कर्मकारों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिये कदम उठायेगा ।
अनुच्छेद 44 – राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान सिविल संहित लागू करने का प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद 45 – राज्य सभी बालकों की 14 वर्ष की आयु पूरी करने तक निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करेगा ।
अनुच्छेद 46 – राज्य जनता के दुर्बल वर्गों के विशेषकर अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों की शिक्षा और आर्थिक हितों की विशेष सावधानी से वृद्धि करेगा ।
अनुच्छेद 47 – राज्य सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार एवं मादक द्रव्यों एवं हानिकारक औषधियों को निषेध करेगा ।
अनुच्छेद 48 – राज्य कृषि और पशुपालन की आधुनिक तकनीकी को संगठित करने का प्रयास करेगा और दूध देने वाले पशुओं गायों बछड़ों के वध करने पर निषेध करने के लिये उचित कदम उठायेगा ।
अनुच्छेद 48 – ए – राज्य देश के पर्यावरण वन्य जीवों की रक्षा के उपाय करेगा ।
अनुच्छेद 49 – राज्य ऐतिहासिक तथा राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों की रक्षा करेगा ।
अनुच्छेद 50 – राज्य न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग रखेगा ।
अनुच्छेद 51 – राज्य ( 1 ) अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि का ( 2 ) राष्ट्रों के बीच न्याय सगत और सम्मानपूर्ण सम्बन्धों को बनाये रखने का , ( 3 ) संगठित लोगों के एक – दूसरे से व्यवहारों में अन्तर्राष्ट्रीय विधि और सन्धि बाध्यताओं के प्रति सम्मान बढ़ाने का और ( 4 ) अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को मध्यस्थता द्वारा निपटाने का प्रयास करेगा ।
- मूल अधिकारों एवं नीति निदेशक तत्त्वों में अन्तर(Indian Constitution) ——
1.मौलिक अधिकारवाद योग्य हैं तथा नीति निर्देशक तत्त्ववाद योग्य नहीं है ।
2.मौलिक अधिकार नकारात्मक और निर्देशक तत्त्व सकारात्मक हैं ।
3.मौलिक अधिकारों का कानूनी महत्त्व हैं , जबकि निदेशक सिद्धान्त नैतिक आदेश हैं ।
4.मौलिक अधिकारों का ( अनुच्छेद 20 को छोड़कर ) अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत स्था किया जा सकता है , जबकि निदेशक तत्त्वों को नहीं |
5.मौलिक अधिकारों पर कुछ प्रतिबन्ध हैं जबकि निदेशक सिद्धान्तों पर कोई प्रतिबन्ध नहीं है|
President
Raashtrapati भारतीय संघ की कार्यपालिका का प्रधान राष्ट्रपति है । वह भारत का प्रथम नागरिक होता है|
राष्ट्रपति की योग्यतायें(Indian Constitution) – ( 1 ) वह भारत का नागरिक हो । ( 2 ) वह 35 वर्ष की आयु होना चाहिये। लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की अर्हत्ता रखता हो । ( 4 ) वह सरकार ( केन्द्र अथवा राज्य ) अधीन किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो । ( 5 ) वह विधानमण्डल के किसी सदन का सदस्य न हो ।
President का निर्वाचन(Indian Constitution) – भारत का राष्ट्रपति अप्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुना जाता है । राष्ट्रपति का निर्वाचन अनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा तथा निर्वाचन में मतदान गूढ़ शलाका द्वारा होगा ( अनु ० 55 ) । इसके निर्वाचन में संसद तथा विधानमंडल के निर्वाचित सदस्य भाग लेते हैं । राष्ट्रपति(President) के प्रमुख अधिकार एवं शक्तियाँ(Indian Constitution) – ( 1 ) अनुच्छेद 77 व 299 के अनुसार सरकार समस्त कार्य , संधि समझौते राष्ट्रपति के नाम पर किये जायेंगे । सरकार के समस्त निर्माण उसके ही माने जायेंगे । ( 2 ) संविधान के द्वारा राष्ट्रपति को उच्च पदाधिकारियों को नियुक्त करने उन्हें हटाने की शक्ति प्रदान की गई है । अनुच्छेद 74 के अनुसार , राष्ट्रपति लोकसभा के बहुमत के नेता के प्रधानमंत्री एवं उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है । इनके अतिरिक्त राष्ट्रपति अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति भी करता है । जैसे- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश , भारत का महान्यायवादी , भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक , राज्यों के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों आदि की नियुक्ति । ( 3 ) प्रमुख आयोगों के गठन का अधिकार राष्ट्रपति का है । जैसे- वित्त आयोग संघलोक सेवा आयोग आदि । ( 4 ) राष्ट्रपति संसद के सदनों के अधिवेशन बुलाता है एवं समाप्ति घोषणा करता है वह लोकसभा को उसके कार्यकाल से पहले भंग कर सकता है । ( ) राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 व लोकसभा में 2 सदस्यों को मनोनीत कर सकता है । ( 6 ) अनुच्छेद 123 ( 1 ) अनुसार जब संसद का सत्र न चल रहा हो तब राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकता है । इस प्रकार अध्यादेश उतना ही प्रभावी होगा जितना कि संसद द्वारा पारित किया गया कानून ( 7 संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक अधिनियम तब तक नहीं बन सकता जब तक कि उसे राष्ट्रपति की स्वीकृत नहीं मिल जाती । ( 8 ) राष्ट्रपति भारत की तीनों सेनाओं अर्थात् जल , थल और वायु सेना का सर्वोच्च सेनापति होता है । इन सेनाओं के प्रमुखों की नियुक्ति राष्ट्रपति ही करता है । ( 9 ) संविधान के अनुच्छेद 72 के अनुसार , राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति के दंड को क्षमा करने या दंड को कम करने निलम्बित करने अथवा दंड को किसी अन्य दंड में बदलने का अधिकार रखता है । ( 10 ) कोई भी वित्त विधेयक राष्ट्रपति की अनुमति के बिना संसद में पेश नहीं किया जा सकता ।
आपात शक्तियाँ – ( 1 ) अनुच्छेद 352 के अनुसार , राष्ट्रपति को युद्ध या बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा संकट में होने के आधार पर ” आपात की उद्घोषणा ” करने की शक्ति प्राप्त । ( 2 ) अनुच्छेद 360 के अनुसार , यदि संघ अथवा उसके राज्य की वित्तीय स्थायित्व साख संकट में हैं . तो राष्ट्रपति वित्तीय आपात की घोषणा कर सकता है । ( 3 ) राज्यों में संवैधानिक की स्थिति में उसे विशेषाधिकार प्राप्त हो जाते हैं ।
उपराष्ट्रपति
निर्वाचन – उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्यों के द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होता है ।
योग्यतायें – वह भारत का नागरिक हो उसकी आयु कम से कम 35 वर्ष हो वह राज्य सभा का सदस्य चुने जाने की अर्हता रखता हो ।
कार्य एवं शक्तियाँ – ( 1 ) उपराष्ट्रपति , राज्यसभा के सभापति के रूप में कार्य करता है । ) अनच्छेद 65 ( 1 ) के अनुसार , राष्ट्रपति की अनुपस्थिति , बीमारी , कार्यकाल के दौरान मृत्यु आदि की दशा में उपराष्ट्रपति , राष्ट्रपति का कार्यभार संभालेगा । ( 3 ) जब कभी उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति का त्यागपत्र प्राप्त हो वह उसकी सूचना लोकसभा अध्यक्ष को देता है ।
मन्त्री परिषद्(Indian Constitution)
प्रधानमंत्री — अनुच्छेद 75 ( 1 ) यह उपबन्धित करता है कि ‘ प्रधानमंत्री ‘ की नियुक्ति राष्ट्रप प्रधानमंत्री की मंत्रणा पर करेगा , किन्तु के मामले में राष्ट्रपति कदाचित ही अपने स्वविवेक का प्रयोग कर सकता है । मनमानी नहीं कर सकता क्योंकि उसे ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री चुनना होता है जो लोकसभा के बहुमत – दल का नेता अथवा जिसे सदन के बहुमत का समर्थन प्राप्त हो ।
प्रधानमंत्री की शक्तियाँ एवं कार्य – ( 1 ) मंत्री परिषद् को मूर्त रूप प्रदान करना अर्थात् निर्माण करना । ( 2 ) मंत्रियों को विभाग इत्यादि सौंपना । ( 3 ) देश के हित में कार्य करना । ( 4 ) मन्त्री परिषद् संचालन करना । ( 5 ) राष्ट्रपति तथा मन्त्री परिषद् के बीच एक कड़ी का कार्य करना । ( 6 ) राष्ट्र के विकास के सभी उचित कार्य करना ।
मन्त्री परिषद्– मन्त्री परिषद् की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है । मन्त्री परिषद् में मंत्रियों के चार स्तर होते हैं ( 1 ) मन्त्रीमंडलीय अथवा कैबिनेट स्तर के मंत्री , जिनसे मिलकर मन्त्रिमंडल बनता है , ( 2 ) राज्यमंत्री स्वतन्त्र प्रभार , 3 ) राज्यमंत्री ( 4 ) उपमंत्री राष्ट्रपति ही प्रधानमंत्री एवं मन्त्री परिषद् को पद व गोपनीयता की शपथ दिलाता है|
कार्यकाल – सामान्य तौर पर प्रधानमंत्री व मन्त्रि परिषद् का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है किन्तु लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पास होने की दशा में मन्त्रि परिषद् को इस कार्यकाल में कभी भी त्यागपत्र देना पड़ सकता है । इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री द्वारा त्यागपत्र देने पर पूरा मन्त्रि परिषद् स्वतः बर्खास्त हो जाता है ।
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Statue of Unity.स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
संसदीय प्रक्रिया से सम्बन्धी मुख्य तथ्य (Indian Constitution)
1.प्रश्नकाल — संसद के दोनों सदनों में बैठक के पहले घंटे को प्रश्नकाल कहा जाता है । इस काल में लोकसभा सदस्य मन्त्रियों से प्रश्न करते हैं ।
2.शून्यकाल प्रश्नकाल के बाद एक घंटा सामान्य दशा में शून्यकाल का होता है । इस काल में सार्वजनिक हित का कोई भी प्रश्न जो आवश्यक हो पूछा जा सकता है । इस काल में सभी सदस्यों को बोलने समान अवसर दिया जाता है ।
3.निन्दा प्रस्ताव- यह प्रस्ताव विरोधी पक्ष द्वारा सरकार की आलोचना व शासन की आलोचना के सन्दर्भ में लाया जाता है ।
4.ध्यानाकर्षण प्रस्ताव- इस प्रस्ताव में सभापति की स्वीकृति से जब कोई सांसद किसी मंत्री का ध्यान किसी विशेष महत्त्व के बिन्दु पर कराता है जिसे टाला न जा सके , तो इसे ध्यानाकर्षण प्रस्ताव कहते हैं ।
अविश्वास प्रस्ताव – यह प्रस्ताव संसद में विपक्ष द्वारा लाया जाता है । यदि लोकसभा अध्यक्ष प्रस्ताव से सहमत होते हैं , तो वे उसे लोकसभा में पढ़कर सुनाते हैं और यदि 50 सांसद उसमें होते हैं , तो अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा होती है जिसमें उसके पास होने पर मन्त्रि परिषद् को पत्र देना होता है ।
काम रोको प्रस्ताव – किसी सार्वजनिक महत्त्व के विषय पर विचार करने के लिये यदि कोई सदस्य वर्तमान कार्यवाही को बन्द करने का प्रस्ताव करता है , तो इसे काम रोको प्रस्ताव कहते हैं ।
स्थानापन्न प्रस्ताव – जब किसी प्रस्ताव के स्थान पर उसके स्थान पर दूसरा प्रस्ताव रखा जाता है , तो उसे स्थानानापन्न प्रस्ताव कहते हैं ।
धन विधेयक – साधारण तथा आय – व्यय से सम्बन्धित क वित्तीय में किसी नये प्रकार कर में संशोधन आदि से सम्बन्धित विषय वित्त विधेयक- यह विधेयक आय एवं व्यय से सम्बन्धित होता है ।
आकस्मिक निधि – अनुच्छेद 267 के अनुसार , यह एक ऐसी विधि है जिसमें संसद द्वा पारित कानूनों द्वारा समय – समय पर धन जमा किया जाता है तथा देश में संकट उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति की अनुमति से इससे धन प्रदान किया जाता है ।
‘साझा सरकार – जब किसी दल का पूर्ण बहुमत संसद में नहीं आता तथा कुछ दल मिलकर सरकार बनाने का दावा करते हैं और वे अपना बहुमत सिद्ध कर देते हैं , तो ऐसी सरकार को साझ सरकार या मिली – जुली सरकार कहते हैं ।
मध्यावधि चुनाव – निर्धारित समय के पूरा होने से पहले यदि चुनाव कराये जाते हैं तो उन्हें मध्यावधि चुनाव कहते हैं ।
संचित निधि – अनुच्छेद 266 ( 1 ) के अनुसार सरकार को मिलने वाले सभी राजस्व जैसे सीमा शुल्क , उत्पाद शुल्क , आयकर , अन्य कर जो सरकार को वसूली से प्राप्त होते हैं । वे सभी संचित निधि में जमा किये जाते हैं । इसे ही संचित निधि कहते हैं ।
अध्यादेश – राष्ट्रपति अथवा राज्यपाल द्वारा संसद के दो सत्रों के बीच यदि कोई आदेश जारी किया जाता है तो उसे अध्यादेश ( Ordinary ) कहा जाता है । इसका प्रभाव एक सीमित अवधि तक रहता है ।
लालफीता शाही – जब किसी सरकारी कार्यालय द्वारा किसी कार्य के कार्यन्वयन में बिना वजह बाधा पहुँचायी जाती है तथा छोटी – छोटी औपचारिकताओं पर आवश्यकता से अधिक ध्यान दिया जाता है तो इसे लालफीता शाही कहते हैं ।
महाधिकार पत्र ( Magna Carta ) – 12 जून , 1215 ई ० को इंग्लैण्ड के राजा जॉन ने एक घोषणा – पत्र जारी किया जिसमें वहाँ के सामन्तों को निश्चित अधिकार प्रदान किये गये । इन अधिकारों को आधुनिक लोकतन्त्र का आधार कहा जाता है । इसके द्वारा मूल अधिकार एवं समान न्याय व्यवस्था की स्थापना हुई इसे ही ( Magna Carta ) कहा जाता है ।
कोरम ( Quorum ) – किसी भी संस्था / संसद में यदि एक निश्चित संख्या में उसके सदस्य उपस्थित नहीं हैं तो उस संस्था की कार्यवाही नहीं चल सकती । इसे ही कोरम कहा जाता है ।
महाभियोग – भारतीय संविधान द्वारा कुछ उच्चतम / श्रेष्ठ पदाधिकारियों को कथित कदाचार या अपराध के आधार पर पद से हटाया जा सकता हैं । इसमें सम्बन्धित कार्यवाही को ही महाभियोग Impeachment ) कहते हैं , किसी भी पदाधिकारी पर महाभियोग चलाने से 14 दिन पहले उसे सूचित करना आवश्यक है । महाभियोग का निर्धारण बहुमत के आधार पर होता है ।
कर्फ्यू – किसी निश्चित क्षेत्र में किसी निश्चित समय के लिये जनता की आवाजाही पर रोक लगाना कर्फ्यू कहलाता है । ऐसा किसी निश्चित स्थान पर हिंसा चलाने अथवा आपातकाल की दशा में किया जाता है । इसे कर्फ्यू कहते हैं ।
स्नेप पोल ( Snap – Poll ) – जब किसी संघ की कार्यपालिका को उसके प्रधान द्वारा तुरन्त ही अधिसूचना पर चुनाव कराया जाता है । तो इसे स्नैप पोल कहते हैं ।
शीतयुद्ध – जब दो देशों या गुटों के बीच अप्रत्यक्ष आरोप लगाये जाते हैं और उनके बीच तनाव होता है , तो इसे शीतयुद्ध ( Cold War ) कहा जाता है ।
सैबोटेज ( Sabotage ) – जब कोई राजनैतिक पार्टी या सरकार किसी अन्य सरकार व|
उच्च न्यायालय–(Indian Constitution)
संविधान के अनुसार उच्च न्यायालय राज्य न्यायपालिका का सर्वोच्च न्यायालय है । अनुच्छेद 214 के अनुसार , प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है , लेकिन यह आवश्यक नहीं कि प्रत्येक राज्य में एक उच्च न्यायालय हो । संसद को यह अधिकार है कि वह दो राज्य या अधिक एवं एक केन्द्रशासित प्रदेश के लिये एक ही उच्च न्यायालय की व्यवस्था कर सके । उच्च न्यायालय राज्य अथवा अपने अधिकारित क्षेत्र का बड़ा न्यायालय होता है । अन्य सभी राज्य के न्यायालय उसके अधीन कार्य करते हैं । –
न्यायाधीशों की नियुक्ति (Indian Constitution) – उच्च न्यायालय में एक प्रमुख न्यायाधीश व कुछ अन्य न्यायाधीश होते हैं । जिनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल की सलाह लेता है । अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय सर्वोच्च न्यायाल के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बन्धित राज्य के राज्यपाल के अतिरिक्त उच्च न्यायालय मुख्य न्यायाधीश का परामर्श लेना राष्ट्रपति के लिए अनिवार्य है , लेकिन संविधान में यह व्यवस्था नहीं है कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करते समय राष्ट्रपति के लिए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश तथा सम्बन्धित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की सलाह को मानना आवश्यक है अथवा नहीं । –
न्यायाधीशों की योग्यताएँ – ( 1 ) वह भारत का नागरिक हो । ( 2 ) कम से कम 10 वर्ष तक भारत के किसी न्यायिक पद पर आसीन रहा हो । ( 3 ) किसी भी राज्य के उच्च न्यायालय में एक से अधिक राज्य के उच्च न्यायालयों में कम से कम 10 वर्ष तक अधिवक्ता रहा हो।
कार्यकाल – उच्च न्यायालय के न्यायाधीश 62 वर्ष की आयु तक अपने पद पर बने रह सकता हैं । इससे पहले वे पद को त्याग – पत्र देकर छोड़ सकते हैं । यदि संसद के दोनों सदन पृथक – पृथक अपनी सदस्य संख्या के बहुमत से उपस्थित एवं मतदान में भाग लेने वाले सदस्यों के दो – तिहाई बहुम से प्रस्ताव पारित करके राष्ट्रपति को भेज दें तथा राष्ट्रपति सम्बन्धित न्यायाधीश को पच्युत करने का आदेश दें एवं यदि राष्ट्रपति उच्च न्यायलय के किसी न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्ति कर दें या उसे किसी अन्य राज्य के उच्च न्यायालय में स्थानान्तरित कर दें ।
शक्तियाँ एवं अधिकार क्षेत्र (Indian Constitution) – ( 1 ) प्रारम्भिक या मूल अधिकार ( 2 ) अपीलीय क्षेत्राधिकार ( 3 ) मौलिक अधिकारों को लागू कराने का अधिकार । ( 4 ) न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार ( 5 ) प्रमाण – पत्र देने का अधिकार ( 6 ) निम्न न्यायालय से मुकदमों को स्थानान्तरित करने क अधिकार । ( 7 ) प्रशासकीय शक्तियों से सम्बन्धित अधिकार ( 8 ) अधिकार क्षेत्र के विस्तार क अधिकार ।
राज्यमन्त्री परिषद् (Indian Constitution)
मुख्यमंत्री – संघ की तरह राज्यों में व्यवस्थापिका स्थापित की गयी है । इस व्यवस्था में मुख्यमंत्र राज्य का प्रधान होता है ।
नियुक्ति – मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्य के राज्यपाल द्वारा की जाती है । राज्यपाल राज्य विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल के नेता को राज्य सरकार बनाने का मौका देता है तथा बहुमत दल नेता को मुख्यमंत्री नियुक्ति करता है । मुख्यमंत्री की नियुक्ति में राज्यपाल अपने विवेक का सहारा भी ले सकता है ।
कार्य एवं शक्तियाँ – केन्द्र की तरह राज्यों में संसदीय प्रणाली होने के कारण राज्यपाल को परामर्श और सहायता देने के लिये मन्त्री परिषद् की व्यवस्था की गई है जो सामूहिक रूप से विधानसभा मुख्यमंत्री मन्त्रियों के बीच विभागों का बटवारा एवं विभाग परिवर्तन का संचालन करना । ( 4 ) राज्य सरकार मुख्य प्रवक्ता के रूप में कार्य करना । ( 5 ) वह मंत्रिपरिषद् एवं राज्यपाल के मध्य एक कड़ी का कार्य करता है ।