दोस्तों आज के इस ब्लॉग में हम बात करेंगे | बसंत पंचमी के बारे में | कि बसंत पंचमी (Basant Panchami) कब और क्यों मनाई जाती है? Full Details In Hindi 2023 & More…
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कब मनाई जाती है Basant Panchami?
हिंदू पंचांग के अनुसार बसंत पंचमी का त्यौहार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। बसंत पंचमी का त्यौहार हिंदू पंचांग के मुताबिक मनाया जाता है इसीलिए हर साल अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक इसकी तिथियां बदलती रहती हैं। लेकिन हिंदू पंचांग के मुताबिक मनाई जाने वाली बसंत पंचमी की तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के जनवरी या फरवरी महीने में पड़ती है।
बसंत पंचमी का त्यौहार 2023 में 26 जनवरी गुरुवार के दिन मनाई जाएगीं। यह दिन विद्यार्थियों के लिये अति उत्तम दिन माना जाता है इस दिन विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा की जाती है।
Basant Panchami क्यों मनाई जाती है ?
हिंदू मान्यताओं के अनुसार बसंत पंचमी के दिन ही वाणी और विद्या की देवी सरस्वती जी का जन्म हुआ था। यही कारण है कि हर साल देवी सरस्वती की जयंती के रूप में बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है।
हिंदू उपनिषदों की एक कथा के अनुसार भगवान नारायण और शिव की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने सृष्टि और जीवों की संरचना की। लेकिन संसार सृजन के बाद ब्रह्मा जी अपनी संसृति से संतुष्ट नहीं थे क्योंकि संसार का सृजन तो हो गया था लेकिन संपूर्ण संसार मौन के सागर में डूबा हुआ था। कहीं कोई ध्वनि नहीं थी जिसके कारण ब्रह्मा जी को अपनी संरचना अधूरी लग रही थी।
इस कमी को दूर करने के लिए तथा इस गंभीर समस्या के निवारण हेतु ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की उपासना करनी शुरू की। ब्रह्मा जी द्वारा स्तुति करने पर भगवान विष्णु प्रकट हुए और ब्रह्मा जी ने उन्हें अपनी सारी समस्या बता दी। भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी की समस्या के निवारण के लिए आदि शक्ति देवी दुर्गा का आवाहन किया और देवी आदि शक्ति प्रकट हुई।
ब्रह्मा और विष्णु जी के निवेदन पर आदि शक्ति देवी दुर्गा के शरीर से श्वेत प्रकाश का भारी तेज उत्पन्न हुआ जिससे उनके एक नए स्वरूप का जन्म हुआ।
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देवी आदिशक्ति दुर्गा का यह स्वरूप श्वेत वर्ण वाली चतुर्भुजी देवी का था जिनके एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में वर मुद्राएं सुशोभित हो रही थी जबकि अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला विराजमान थी। देवी ने अपने वीणा की मधुर नाद से संसार के प्रतीक जीवो को स्वर प्रदान किया। देवी के वीणा की मधुर नाद से ही संपूर्ण विश्व में कोलाहल भर गया, जलधारा से कल कल की आवाज आने लगी और हवाओं में सरसराहट आ गई।
देवी के इस उपकार पर ब्रह्मा विष्णु और सभी देवी देवताओं ने मिलकर उन्हें प्रणाम किया और उन्हें स्वर और वाणी की देवी सरस्वती की संज्ञा दी। तब आदि शक्ति दुर्गा जी ने ब्रह्मा जी से कहा कि वह देवी सरस्वती को अपनी पत्नी बना ले। इसीलिए देवी सरस्वती को ब्रह्मा जी की पत्नी माना जाता है।
हालांकि कुछ लोग मतों के अनुसार ब्रह्मा जी ने स्वयं अपने कमंडल से जल निकालकर संकल्प के जरिए देवी सरस्वती को उत्पन्न किया था और उन्हें वीणा बजाने का आदेश दिया था। देवी सरस्वती के वीणा बजाते ही संसार के सभी जीवो को स्वर मिल गया जिसके कारण ब्रह्मा जी ने उन्हें सरस्वती नाम दिया।
ऐसा माना जाता है कि जिस दिन देवी सरस्वती का जन्म हुआ था वह तिथि बसंत पंचमी की ही थी। यही कारण है कि बसंत पंचमी का त्यौहार सरस्वती जयंती के रूप में मनाया जाता है और इस दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। सरस्वती पूजन के कारण ही बसंत पंचमी का त्यौहार सरस्वती पूजा के नाम से भी मशहूर है।